Swati Sharma

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लेखनी कहानी -23-Dec-2022:- औरत का जीवन- एक कसौटी

लेख मंथ प्रतियोगिता:- 

औरत का जीवन - एक कसौटी 

नारी एक सृजनात्मक  शक्ति है, जो हर मनुष्य चाहे वो स्त्री हो या पुरुष सभी में विद्यमान होती है | जब तक यह शक्ति मनुष्य में जागृत ना हो, तब तक वह मनुष्य अपनी वास्तविकता से दूर या अनछुआ रहता है | जब तक यह शक्ति मनुष्य में सुक्षुप्त्तावस्था में रहती है, तब तक वह मनुष्य कितनी भी आध्यात्मिक जागरूकता बढ़ने की चेष्टा कर ले | वह अपनी वास्तविक पहचान या यूं कहा जाए तो अधिक बेहतर होगा कि वह अपनी आत्मा के लक्ष्य से अनभिज्ञ रहता है | अपनी पूर्णता को प्राप्त करने हेतु मनुष्य का सर्वप्रथम अपने भीतर विद्यमान नारी तत्व (नारी शक्ति) को जागृत करना अत्यंत आवश्यक होता है | अतः इसीलिए नारी शक्ति को सभी देवी-देवताओं एवं स्वयं ईश्वर ने भी पूजनीय बताया है | एक कहावत है ना कि “नारी बिन सब सून” | यह कहावत भी नारी शक्ति की गरीमा की पराकाष्ठा की व्यवस्था समुचित तरीकों एवं मापदंडों से ही करती है | “नारी बिन सब सून”, अर्थात जब तक नारी रुपी सृजनात्मक शक्ति की जागृति नहीं होगी, तब तक मनुष्य का, उसकी आत्मा का उच्च स्तर पर या सही मायनों में सृजन सम्भव ही नहीं है | ऐसा ना होने पर मनुष्य सबकुछ प्राप्त करके भी शांति एवं सम्पूर्णता प्राप्त नहीं कर सकता | तभी तो देवों के देव महादेव ने भी नारी शक्ति को अपना अभिन्न अंग दर्शाते हुए उनकी पराकाष्ठ का बखूबी वर्णन किया एवं उन्हें अपने ही समान पूज्यनीय बताया | परन्तु, इस शक्ति की जागृति जितनी आवश्यक है, उतना ही आवश्यक है इसको संतुलन में रखना | अन्यथा यह सृजनात्मक शक्ति विध्वंसक शक्ति के रूप में बदलने में ज़रा भी समय नहीं लगाएगी | उस समय यह कहावत चरितार्थ हो जाती है- “नारी सब पर भारी” |
यदि आज की नारी की परिस्थिति की चर्चा की जाए तो सर्वप्रथम हमें विचार करना होगा आधुनिक नारी के निर्माण के विषय में एवं उस निर्माण के फ़ायदे और नुक्सान के विषय में !
हमें विचार करना होगा कि वह किस दिशा में जा रही है ? वह दिशा उचित है अथवा अनुचित ? हमें चर्चा करनी होगी आधुनिक नारी की दशा के बारे में |
यदि प्राचीन काल की बात की जाये, तो उस समय नारी को देवी की उपमा दी जाती थी | वह सभी के लिए पूजनीय होती थी | चहुँओर नारी की गरीमा एवं शक्ति का गुणगान होता था | सबके सम्मान से पूर्व नारी का सम्मान किया जाता था | परन्तु, धीरे-धीरे वह गरीमा धूमिल हो गई | वह शक्ति कहीं विलुप्त हो गई | उसका सम्मान कहीं खो गया | यह सब किस प्रकार हुआ होगा इसका अनुमान हम बड़ी ही सरलता एवं सहजता से लगा सकते हैं | क्योंकि सभी परिस्थितियां हमारे समक्ष बहुत ही स्पष्टता से विद्यमान हैं कि इस विषयइ की गूढ़ता का पता लगाना इतना भी कठिन नहीं है |
यदि नारी के निर्माण के विषय में चर्चा की जाए तो, उसकी आधुनिक दशा सर्वप्रथम दृष्टिगोचर होती है | कुछ माननीय यह मानते हैं कि आधुनिक नारी की दिशा गलत है, नकारात्मक है | उसकी प्रगति की दिशा से वे संतुष्ट नहीं हैं | वहीँ दूसरी ओर ऐसे मान्यवरों की भी कमी नहीं है, जो आधुनिक नारी की दिशा को सही एवं सकारात्मक बताते हुए उसका समर्थन करते हुए प्रतीत होते हैं | जब हम आधुनिक नारी की दिशा के विषय को गहनता से देखेंगे तो पाएँगे कि सर्वप्रथम नारी को अपने शिकंजे में कसने वाली प्रथाएँ एवं परम्पराएँ हमारे समक्ष प्रस्तुत होंगी |
‘परम्पराएं’ एक ओर सुनने में जितना आनंदित शब्द है, वहीँ दूसरी ओर कई परिस्थितियों में यह शब्द अत्यंत भयावह प्रतीत होता है | परम्पराएं मनुष्य जीवन को सभ्यता एवं सकारात्मक जीवन जीने हेतु बनाईं गईं थीं | परन्तु, हम मनुष्यों ने धीरे-धीरे इस शब्द को कई स्थितियों-परिस्थितियों में लज्जित-सा कर दिया है | अतः लज्जित करने में जितना हाथ पुरुषों का है, उतना ही सहयोग स्त्रियों का भी रहा है |
यदि मध्य काल की बात करें तो, पाएँगे कि एक नारी ने दूसरी नारी को परम्परा रुपी बेडी में जकड़ने का भरसक प्रयास किया है | परंपरा मनुष्य जीवन को नियमित रूप देने हेतु बनाई गई थीं | परन्तु, हम मनुष्यों ने इसे एक बेडी के रूप में प्रमाणित कर दिया | उदाहरण के लिए हमारे समाज में कई प्रकार की प्रथाओं ने सहसा ही जन्म ले लिया है | इन प्रथाओं ने परंपराओं के नाम पर स्त्री को बहुत छला है | जैसे:- पर्दा प्रथा, दहेज़ प्रथा, सती प्रथा इत्यादि तो सबसे अधिक प्रचलित हैं | परन्तु, हमारे समाज में हर वर्ग में, हर जाति-धर्म में नारी के लिए ना जाने कितनी ही प्रथाओं और रूढ़िवादी सोच ने परम्परा का रूप ले रखा है | ना जाने कब से वह सोच स्त्रियों को छलती आ रही है | कभी किस रूप में तो कभी किस रूप में |
हाँ, यह सत्य है कि एक नारी दूसरी नारी की सबसे बड़ी शत्रु साबित हो सकती है | इसीलिए समाज के कुछ बुद्धिजीवियों ने एक स्त्री को नष्ट करने हेतु दूसरी स्त्री को उसके समक्ष प्रस्तुत कर दिया | ये बुद्धिजीवी मनुष्य भली प्रकार से जानते थे एवं जानते हैं कि नारी एक ऐसी शक्ति है, जिसका सामना करना किसी के लिए भी संभव नहीं | इसीलिए जब एक शक्ति को वश में करना हो या नष्ट करना हो तो, उसके समक्ष उसी के समान दूसरी शक्ति प्रस्तुत कर दो | अतः यह सत्य भी है; एक नारी की सहायता के बिना कोई पुरुष किसी नारी को ना तो वश में कर सकता है और ना ही उसे नष्ट ही कर सकता है |
समाज में जब भी हम नारी के प्रति कोई विद्रोह, किसी भी वारदात का अन्वेषण करेंगे तो पाएँगे कि कहीं ना कहीं उस विद्रोह, उस वारदात में, पुरुष की सहभागी कोई स्त्री अवश्य उसके समर्थन में होगी |
अब प्रश्न यह उठता है कि क्या परम्पराएं एवं प्रथाएँ बनाकर हमने एक सभ्य समाज का निर्माण किया है ? क्या इन परम्पराओं एवं प्रथाओं के मध्य झूलती हमारी नारी आनंदित एवं सुरक्षित है ? उदाहरण के लिए क्या पर्दा प्रथा स्त्रियों का मान मर्दन होने को रोक सकती है ? जब समाज आधुनिक स्त्री के पहनावे पर प्रश्न चिन्ह लगता है, तो एक प्रश्न यह भी उठता है कि क्या जो स्त्रियाँ परदे में रहती हैं उनके साथ बलात्कार जैसे अपराध नहीं होते ? क्या उनका मान मर्दन नहीं होता ? क्या उन पर अत्यचार नहीं होते ? क्या उन्हें अन्याय एवं अपमान का सामना नहीं करना पड़ता ? क्या एक कपडे का बना पर्दा एक स्त्री को उसका सम्मान, उसकी अभिलाषाएं, उसकी इच्छाएँ, उसके लक्ष्य एवं उसका खुशहाल जीवन उसे प्रदान कर पा रहा है ? क्या दहेज़ देने से आप अपनी बेटियों के भविष्य की खुशियों एवं सुरक्षा को निश्चित कर सकते हैं ? क्या स्त्री के सती होने से ही उसके चरित्र का सही आंकलन हो सकता है ? इत्यादि |
इन सभी प्रश्नों का उत्तर एवं इनके पीछे का सत्य यह है कि व्यक्ति ने पर्दा एक स्त्री पर उनकी सुरक्षा के लिए नहीं, अपितु अपनी काली करतूतों को छिपाने हेतु डाला है | दहेज़ अपने स्वार्थ एवं ज़रूरतों को पूर्ण करने हेतु लिया है | परन्तु, जिस दिन स्त्री को अपनी शक्तियों का भान होता है | वह चंडी बनकर सामने आती है, वह प्रश्न करती है | परन्तु, उसे कभी उसके प्रश्नों का उत्तर नहीं मिलता | जानते हैं क्यों ? क्योंकि इन सभी प्रश्नों का उत्तर मात्र यही है कि स्त्री का उपयोग एवं उपभोग करने हेतु उसे भ्रमित करना | सर्वप्रथम उसे यह महसूस करवाना कि वह कमज़ोर है | फिर उसे यह महसूस करवाना कि उसे मर्यादा में रहना चाहिए | अंततः उसे यह महसूस करवाना कि यदि वह हमारी प्रथाओं, हमारी रूढ़ीवादिताओं एवं परम्पराओं को आत्मसात नहीं करेगी, तो वह असुरक्षित है, असामाजिक है !
जब स्त्री अपनी शक्ति, अपने अस्तित्व को पहचान जाती है, तो समाज उसे परम्पराओं में बाँधकर उसे रोकना चाहता है | जब वह अपने जीवन के लक्ष्य को पहचानकर अपनी आकांक्षाओं को पर देती है | उसे समाज परम्पराओं को तलवार की तरह उपयोग करके उसके पंखों को काटने की कोशिश करता है |
परन्तु, जब एक स्त्री परम्पराओं और रूढ़ीवादिताओं के मध्य के अंतर को पहचान जाती हैं तो, फिर यह समाज उसे भ्रमित नहीं कर पाता | तब वह उसके समक्ष उसी के समान एक और नारी शक्ति का उपयोग करता है | परन्तु, जब वह समक्ष खड़ी नारी भी सत्य को पहचानकर दूसरी नारी का समर्थन एवं सहयोग करने लगती है | तब समाज में स्त्री को अबला एवं असुरक्षित करार देने वाले बुद्धिजीवीयों को हारकर उसे एवं उसके अस्तित्व को स्वीकारना ही पड़ता है |
लेकिन इस स्तर तक पहुँचने में एक नारी को जो श्रम, जो संघर्ष करना पड़ता है | वह कभी-कभी किसी भयावह स्वप्न से कम नहीं होता | आज जब भारी मात्र में स्त्रियाँ जागरूक, सतर्क एवं सत्य को परखने वाली हो गईं हैं, तो आने वाली पीढ़ी की स्त्रियों के लिए संघर्ष काफी कम हो जाता है | आज समाज में एक समझदार माता-पिता अपनी बेटी को पूर्ण सहयोग देते हैं | आज समाज में ऐसे सास-ससुर की मात्र भी बढ़ गई है, जो अपनी बहु के सपनों को कुचलने के स्थान पर उसे सहयोग एवं समर्थन देते हैं | उसे बहु नहीं अपितु, बेटी मानकर उसका लक्ष्य प्राप्ति में साथ देते हैं | आज समाज में ऐसे पतियों की भी कमी नहीं, जो अपनी पत्नी के सपनों एवं उसकी उड़ान का समर्थन करते हैं | जिन्हें अपनी अर्धांगिनी की सफलता से हीन भावना या असुरक्षा की भावना के स्थान पर उनके पति होने गर्व महसूस होता है |
परन्तु, समाज में आज भी कई जगह स्त्री का आत्म-सम्मान, आत्म निर्भरता एवं स्वायत्तता में कमी है | आज भी कई स्त्रियाँ अपनी शक्ति को पहचानने में असमर्थ हैं | आज भी कई स्थान पर परम्पराओं के नाम पर रूढ़ीवादिताओं की बेड़ियाँ स्त्री को बांधे एवं जकड़े हुए है | कई स्थानों में आज भी स्थिति ऐसी है कि रूढ़ीवादिताओं रुपी परम्पराओं की बेड़ियाँ तोड़ने हेतु, एक स्त्री में नारी शक्ति का सृजन होना आवश्यक है | कई जगहों पर स्त्री विभिन्न प्रकार की रूढ़ीवादी परम्पराओं एवं विद्रोह का सामना कर रहीं हैं; स्वयं एवं समाज के कल्याण हेतु | एक स्त्री का जागरूक, सफल, सम्मानीय, आत्मनिर्भर, दृढ़-निश्चयी एवं स्वायत्त होना एक सभ्य, सुदृढ़, सुगठित, सफल, सकारात्मक एवं शांतिपूर्ण समाज का निर्माण हेतु आवश्यक भी है | क्योंकि केवल स्त्री में ही यह कला होती है कि जब वह आगे बढती है, तो अपने साथ पूरे परिवार को आगे बढाती है | स्वयं के कल्याण के साथ सबके कल्याण के विषय में सोचने की अद्भुत कला, एवं विलक्षण सोच केवल नारी के पास होती है |
जब एक नारी प्रसन्न होती है तो, हर दिन उत्सव होता है, हर दिन बसंत होता है | इसीलिए तो, नारी ईश्वर की श्रेष्ठतम एवं अतुलनीय रचना है |


~स्वरचित एवं मौलिक रचना
स्वाति शर्मा (भूमिका)

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16 Comments

Mahendra Bhatt

25-Dec-2022 02:55 PM

बहुत ही सुन्दर

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Swati Sharma

25-Dec-2022 10:11 PM

धन्यवाद सर

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Muskan khan

24-Dec-2022 07:41 PM

Lajavab

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Swati Sharma

25-Dec-2022 12:54 PM

Thanks ma'am

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Mohammed urooj khan

23-Dec-2022 09:38 PM

शानदार 👌👌👌👌

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Swati Sharma

25-Dec-2022 12:53 PM

शुक्रिया सर 🙏🏻🙏🏻🙏🏻

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